ह्यूमन मिल्क बैंक से थमेगी शिशु मृत्यु दर

ह्यूमन मिल्क बैंक से थमेगी शिशु मृत्यु दर

नरजिस हुसैन

क्या हो अगर किसी मां का बच्चा पैदा होते ही दुनिया से अलविदा हो जाए या मां बच्चे को जन्म देते ही मर जाए या क्या हो जब किसी के जुड़वां बच्चे हो या तीन बच्चे एक साथ हों। ये सारे हालात ये ही बताते हैं कि जो जिंदा है पहले उसे बचाया जाए उसकी तकलीफ दूर की जाए। ये बात यहां बतानी इसलिए जरूरी है क्योंकि  दक्षिण एशिया में भारत स्तनपान या ब्रेस्ट फीडिंग में सबसे कम है। युनिसेफ के मुताबिक देश के सिर्फ 25 प्रतिशत नवजात ही पैदा होने के एक घंटे के अंदर मां का दूध पी पाते हैं जबकि 46 फीसद बच्चे छह महीने से भी कम वक्त तक स्तनपान करते हैं। यही वजह है कि देश में हर साल 8.8 लाख बच्चे अपना छठा जन्मदिन देख नहीं पाते (युनिसेफ की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक)। लेकिन, इसके साथ ही जच्चा को परिवार की मदद और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की भी दरकार होती है।

देश में हर साल करीब 1 करोड़ 50 लाख बच्चे अपने तय समय से पहले पैदा होते हैं मेडिकल भाषा में इन्हें प्रीटर्म बेबीज कहा जाता है। सेव द चिल्डर्न की रिपोर्ट Born Too Soon: The Global Action Report on Preterm Birth(https://www.who.int/pmnch/media/news/2012/201204_borntoosoon-report.pdf) बताती है कि 10 लाख प्रीटर्म बच्चे हर साल पैदा होते ही किसी-न-किसी कारण से मर जाते हैं। तो इस बात को ध्यान में रखते हुए देश में पिछले कुछ सालों में ह्यूमन मिल्क बैंक या ब्रेस्ट मिल्क बैंक तेजी से खुले हैं। प्रीटर्म बेबीज के मामले में दुनिया के दस बड़े देशों सी सूची में भारत का स्थान पहला है। दरअसल, प्रीटर्म बच्चों की मांओं को कुदरती दूध बच्चों के पैदा होते ही आना शुरू नहीं होता इसलिए नवजात बच्चे मां का दूध न मिलने के कारण अलग-अलग जटिलताओं के चलते दम तोड़ देते हैं। हालांकि, इसके अलावा अगर मां डिलिवरी के फौरन बाद बीमार हो जाए या वह एचआईवी पॉजिटिव है या बेहद रक्तस्राव से कमजोर हो गई है तब भी दूध कम बनता है जो बच्चे के लिए काफी नहीं होता। इसके अलावा जिन मांओं के शिशु किन्हीं कारणों से जन्म के फौरन बाद ही दम तोड़ देते हैं ऐसी मांएं अगर अपना दूध दान कर देती हैं तो वह भी दर्द और कई तरह की बीमारी से बच जाती हैं।

यह बात तो सभी जानते हैं कि जन्म के समय नवजात शिशु को मां का दूध मिलना बेहद जरूरी होता है क्योंकि कई खूबियों से भरा वह दूध उसे अलग-अलग बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। लेकिन, किसी भी वजह से अगर अब अगर मां का दूध बच्चे को नहीं मिल पा रहा है तो घबराने की जरूरत नहीं अस्पतालों के साथ ही में ह्यूमन मिल्क बैंक बने होते हैं जहां से बच्चों को उस दूध की जरूरत पूरी की जा सकती है जितने की उन्हें जरूरत होती है। और जिस तरह से कुछ सालों से लगातार प्रीटर्म बेबीज की तादाद बढ़ती जा रही उसे देखते हुए इस तरह के बैंकों की जरूरत भी तेजी से महसूस होती जा रही है।

हालांकि, अब देश में ह्यूमन मिल्क बैंक की मौजूदगी कोई नई नहीं है। दुनिया में सबसे पहले 1911 में ऑस्ट्रिया के वियाना में दुनिया का सबसे पहला ह्यूमन मिल्क बैंक खुला और एशिया में सबसे पहला ह्यूमन मिल्क बैंक मुंबई में 1989 में लोकमान्य तिलक अस्पताल के नाम से शुरू किया गया। देश में 2017 तक इस तरह के 40 ह्यूमन मिल्क बैंक अब तक खोले जा चुके हैं। ब्राजील में 1985 में इस तरह का बैंक शुरू किया गया था जिसकी संख्या अब 217 तक पहुंच गई है। अपनी सिर्फ इस पहल से ब्राजील ने देश में शिशु मृत्यु दर के बढ़ते ग्राफ को 73 प्रतिशत तक थामने में कामयाब रहा था। देश में 1989 के बाद 2016 में राजस्थान सरकार ने 10 जिलों में इस तरह के 13 बैंक शुरू किए उसके बाद महाराष्ट्र में 12 और तमिलनाडु में 10 और इसी तरह पूरे देश में कई राज्यों में ह्यूमन मिल्क बैंक खुलने शुरू हुए।

ह्यूमन मिल्क बैंक में कोई भी सेहतमंद मां अपना दूध दान कर सकती है। उसके बाद बैंक उसकी स्क्रीनिंग करता है उसे पाश्चुराइज्ड करता है और रेफ्रिजरेट कर उन बच्चों तक पहुंचाता है जिन्हे इसकी बहुत जरूरत होती है। विशेषज्ञ इसे लिक्विड गोल्ड भी कहते हैं। इस तरह के दूध की मांग अब हर तरफ बढ़ने लगी है लेकिन, सामाजिक उलझनों के चलते आज भी समाज में इसकी मंजूरी गर्मजोशी से नहीं है। लोगों का मानना है कि जब तक बच्चे की असली मां का दूध नहीं होगा तो डिब्बे का ही दूध देना चाहिए न कि किसी और मां का क्योंकि भारत में मां के दूध से कई मान्यताएं जुड़ी हुई है। इसलिए दूसरी मां का दूध नवजात शिशु को देना जल्दी तेजी नहीं पकड़ा इन मान्यताओं को टूटने में कुछ वक्त लगा लेकिन ऐसा हुआ और इसी का नतीजा है ह्यूमन मिल्क बैंक। 

हाल ही में सरकार ने भी अब इन बैंकों के लिए दिशानिर्देश तय किए हैं। इनके मुताबिक अब यह बैंक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में भी खोलने चाहिए और इन्हें राज्य सरकारों की आर्थिक मदद मिलनी तय किया गया है। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि शिशु के लिए मां का दूध ही अमृत है तो ज्यादा-से-ज्यादा स्तनपान को बढ़ावा देना चाहिए किन्हीं हालातों को छोड़कर। सरकार ने 2025 तक यह लक्ष्य रखा है कि करीब 70 प्रतिशत शिशुओं को ब्रेस्ट मिल्क मिल सके जिसे बाद में 100 फीसद तक बढ़ाया जाना तय है। सरकार की इस पहल से आने वाले वक्त में न सिर्फ शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकेगा बल्कि आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ रखा जा सकता है।

 

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